शिष्य का निर्माण गुरु द्वारा ही हो सकता है
शिष्य की रक्षा करना भी गुरु का ही धरम है
शिष्यों के दोष भी गुरु द्वारा संहारे जा सकते हैं
अत शिष्य को भी गुरु के आदेश का पालन करते हुए
निस्वार्थ भाव से प्रभु की भक्ति करनी चाहिए
वास्तु आचार्य
० ९०१३ २० ३० ४०
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